Chintamani
ISBN: 978-93-568-2734-9
Format: 14.0x21.6cm
Liczba stron: 242
Oprawa: Miękka
Wydanie: 2024 r.
Język: hindi
Dostępność: dostępny
आचार्य शुक्ल का समय स्वाधीनता आंदोलन का समय था। वही समय हिंदी साहित्य में छायावादी साहित्य और प्रेमचंद का भी था। ये सभी लेखक एक दूसरे को जानते समझते थे और एक दूसरे से सीखते भी थे। इन्हें बाँटकर देखने से उस समय को समग्रता से समझने में बाधा आती है। औपनिवेशिक शासन का विरोध और हमारे समाज की जड़ता में सुधार का प्रयत्न इन्हें आपस में जोड़ता है। इन तत्त्वों ने छायावादी रचनाकारों और प्रेमचंद के लेखन में सृजनात्मक रूप लिया तो शुक्ल जी के लेखन में इन्हीं तत्त्वों को वैचारिक आयाम मिला। प्रयत्न की साधनावस्था पर शुक्ल जी के जोर को भी इस संदर्भ से देखा जाना चाहिए। छायावाद के साथ शुक्ल जी को जोड़ने में प्रकृति प्रेम की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। इनके प्रकृति प्रेम की भी व्याख्या इन्हीं संदर्भों में की जानी चाहिए। प्रकृति को नूतनता और परिवर्तन का लगभग पर्याय बना देने में ये लोग सफल रहे। नूतनता के स्वागत और परिवर्तन की इच्छा को तत्कालीन वातावरण से जोड़कर देखा जाना चाहिए। ऐसा करने से हमारे इन रचनाकारों की परिवर्तनकामी सामाजिक भूमिका खुलेगी। उनकी इस भूमिका को समझने और उससे सीखने की जरूरत आज के प्रतिगामी और प्रकृति विनाशक विकास के समय में बहुत अधिक हो गयी है। इस दिशा में अगर कुछ भी मदद इस पुस्तक से मिल सकी तो खुद को धन्य समझूंगा। - गोपाल प्रधान